राजस्थान के प्रमुख लोक देवता और लोक देवियाँ
गोगाजी
• गोगा जी जन्म स्थान ददरेवा (जेवरग्राम) राजगढ़ तहसील(चुरू) में है।
• गोगा जी समाधि गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ) में है।
• लोग इन्हें सांपों के देवता, जाहरपीर के नाम से भी पुकारते हैं।
• शीर्ष मेडी (ददेरवा) तथा घुरमेडी-(गोगामेडी), नोहर मे इनके प्रमुख स्थल हैं।
• गोगा मेंडी का निर्माण “फिरोज शाह तुगलक” ने करवाया।
• वर्तमान स्वरूप (पुनः निर्माण) महाराजा गंगा सिंह नें कारवाया।
• गोगाजी का विशाल मेला भाद्र कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को गोगामेड़ी गाँव में भरता है।
• इस मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी आयोजित होता है।
• यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है।
• गोगा मेडी का आकार मकबरेनुमा हैं।
• गोगाजी की ओल्डी सांचैर (जालौर) में है।
• इनके थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है।
• गोरखनाथ जी इनके गुरू थे।
• गोगाजी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों धर्मो में समान रूप से लोकप्रिय थे।
• धुरमेडी के मुख्य द्वार पर बिस्मिल्लाह अंकित है।
• इनके लोकगाथा गीतों में डेरू नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
• किसान खेत में बुआई करने से पहले गोगा जी के नाम से राखड़ी हल तथा हाली दोनों को बांधते है।
तेजाजी
• सर्पो के देवता के रूप मे पूजा की जाती है
• जन्म स्थान खरनाल (नागौर) है। माता -राजकुंवर, पिता – ताहड़ जी
• तेजाजी का विवाह पनेर नरेश रामचन्द की पुत्री पैमल से हुआ था
• कार्यक्षेत्र हाडौती क्षेत्र रहा है।
• तेजाजी अजमेर क्षेत्र में लोकप्रिय है।
• इन्हें जाटों का अराध्य देव कहते है।
• उपनाम – कृषि कार्यो का उपकारक देवता, गायों का मुक्ति दाता, काला व बाला का देवता।
• अजमेर में इनको धोलियावीर के नाम से जानते है।
• इनके पुजारी घोडला कहलाते है।
• इनकी घोडी का नाम लीलण (सिंणगारी) था।
• परबत सर (नागौर) में ” भाद्र शुक्ल दशमी ” को इनका मेला आयोजित होता है।
• भाद्र शुक्ल दशमी को तेजा दशमी भी कहते है।
• सैदरिया- यहां तेजाजी का नाग देवता ने डसा था।
• सुरसरा (किशनगढ़ अजमेर) यहां तेजाजी वीर गति को प्राप्त हुए।
• तेजाजी के मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय वीरतेजाजी पशु मेला आयोजित होता है।
• इस मेले से राज्य सरकार को सर्वाधिक आय प्राप्त होती है।
• लाछां गुजरी की गायों को मेर के मीणाओं से छुडाने के लिए संघर्ष किया व वीर गति को प्राप्त हुए।
• प्रतीक चिन्ह – हाथ में तलवार लिए अश्वारोही।
• अन्य – पुमुख स्थल – ब्यावर, सैन्दरिया, भावन्ता, सुरसरा।
पाबूजी
• पाबु जी का जन्म संवत 1313 में जोधपुर ज़िले में फलौदी के पास कोलूमंड गाँव में हुआ था।
• देवल चारणी की गायों की रक्षा करते हुए वीर-गति को प्राप्त हुए। इसलिए इन्हें गायों, ऊंटों के देवता के रूप में मानते है।
• पाबु जी को प्लेग रक्षक देवता भी माना जाता है।
• पाबु जी के लोकगीत पावड़े कहलाते है। – इन्हे माठ वाद्य का उपयोग होता है।
• पाबु जी की फड़ राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है।
• पाबु जी की जीवनी पाबु प्रकाश आंशिया मोड़ जी द्वारा रचित है।
• इनकी घोडी का नाम केसर कालमी है।
• पाबु जी का मेला चैत्र अमावस्या को कोलू ग्राम में भरता है।
• पाबु जी की फड़ के वाचन के समय रावणहत्था नामक वाद्य यंत्र उपयोग में लिया जाता है।
• पाबु जी का प्रतीक चिन्ह हाथ में भाला लिए हुए अश्वारोही है।
• पशु के बीमार हो जाने पर ग्रामीण पाबूजी के नाम की तांती (एक धागा) पशु को बाँध कर मन्नत माँगते हैं।
रामदेवजी
• जन्म बाड़मेर जिले के उडूकासमेर गाँव मे
• पिता का नाम अजमल, माँ का नाम मेनादेवी
• पोकरण (जैसलमेर) के पास रुणेचा, यहाँ हर साल भाद्रपद शुक्ला द्वितीय को एकादशी तक मेला लगता है
• रामदेव जी का प्रतिक चिन्ह चरण चिन्ह (पगलिये)है
• इनके मेघवाल भक्त रिखिया कहलाते हैं
• बालनाथ जी इनके गुरू थे।
• प्रमुख स्थल- रामदेवरा (रूणिचा), पोकरण तहसील (जैसलमेर)
• बाबा रामदेव जी का जन्म भाद्रशुक्ल दूज (बाबेरी बीज) को हुआ।
• राम देव जी का मेला भाद्र शुक्ल दूज से भाद्र शुक्ल एकादशी तक भरता है।
• मेले का प्रमुख आकर्षण तरहताली नृत्य होता हैं।
• मांगी बाई (उदयपुर) तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यागना है।
• तेरहताली नृत्य कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
• रामदेव जी श्री कृष्ण के अवतार माने जाते है।
• छोटा रामदेवरा गुजरात में है।
• सुरताखेड़ा (चित्तोड़) व बिराठिया (अजमेर) में भी इनके मंदिर है।
• इनके यात्री जातरू कहलाते है।
• रामदेव जी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों में ही समान रूप से लोकप्रिय है।
• मुस्लिम इन्हें रमसा पीर के नाम से पुकारते है।
• रामदेव जी ने मेघवाल जाति की डाली बाई को अपनी बहन बनाया।
• इनकी फड़ का वाचन मेघवाल जाति या कामड़ पथ के लोग करते है।
देवनारायण जी
• जन्म – आशीन्द (भीलवाडा) में हुआ।
• पिताजी संवाई भोज एवं माता सेडू खटाणी।
• राजा जयसिंह(मध्यप्रदेष के धार के शासक) की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
• गुर्जर जाति के आराध्य देव है।
• गुर्जर जाति का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है।
• देवनारायण जी विष्णु का अवतार माने जाते है।
• मुख्य मेंला भाद्र शुक्ल सप्तमी को भरता हैं।
• देवनारायण जी के घोडे़ का नाम लीलागर था।
• प्रमुख स्थल- 1. सवाई भोज मंदिर (आशीन्द ) भीलवाडा में है। 2. देव धाम जोधपुरिया (टोंक) में है।
• उपनाम – चमत्कारी लोक पुरूष
• जन्म का नाम उदयसिंह थान
• देवधाम जोधपुरिया (टोंक) – इस स्थान पर सर्वप्रथम देवनारायणजी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था।
• इनकी फंड राज्य की सबसे लम्बी फंड़ है।
• फंड़ वाचन के समय “जन्तर” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
• इनकी फड़ पर भारत सरकार के द्वारा 5 रु का टिकट भी जारी किया गया है
• देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईंट की पूजा होती है।
लोक देवियाँ
केला देवी
• केला देवी यदुवंशी राजवंश की कुल देवी है
• जो दुर्गा के रूप मे मानी जाती है
• प्रतिवर्ष चेत्र मास की शुक्ल अष्टमी को लक्खी मेला लगता है
• मंदिर त्रिकुट पर्वत (करोली) राजस्थान मे है
शीलादेवी
• आमेर राज्य के शासक मानसिंह (प्रथम) ने पूर्वी बंगाल विजय के बाद इसे आमेर के राजभवनो के मध्य मे स्थापित करवाया था
• शीलादेवी की स्थापना 16 वी शताब्दी मे हुई थी
• शीलादेवी की प्रतिमा अष्टभुजी है
करणीमाता
• करणी माता बीकानेर के राठौर वंश की कुलदेवी है
• करणी माता का मंदिर बीकानेर जिले के देशनोक नामक स्थान पर स्थित है
• करणी माता चूहों की देवी के नाम से भी प्रसिद है यहाँ पर सफ़ेद चूहों को काबा कहा जाता है
• नवरात्री के दिनों मे देशनोक मे करणीमाता का मेला भरा जाता है
जीणमाता
• जीणमाता का मंदिर सीकर जिले मे हर्ष की पहाड़ी पर स्थित है
• चौहानों की कुलदेवी है
• जीणमाता का मेला प्रतिवर्ष चेत्र व आश्विन माह के नवरात्रों मे आता है
शीतला माता
• शीतला माता की पुजा कुम्हार करते है
• चाकसू मे शील की डूंगरी पर शीतला माता का मंदिर स्थित है
• शीतला माता अकेली देवी है जो खण्डित रूप मे पूजी जाती
• यहाँ प्रतिवर्ष शीतला अष्टमी को मेला लगता है
सकराय माता
• सकराय माता का मंदिर उदयपुरवाट़ी (झुंझुनू) के समीप स्थित है
• खंडेलवालो की कुल देवी है
• इन्हें शाकम्भरी देवी भी कहा जाता है
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