अनुच्छेद 153 के तहत् प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होना आवश्यक है। राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है और केंद्र में राष्ट्रपति की तरह राज्यों में कार्यपालिका की शक्ति उसके अंदर निहित होती है। राज्यपाल राज्य का प्रथम व्यक्ति होता है। लेकिन वास्तविक शक्तियां मुख्यमंत्री के पास होती है। राज्य की सारी कार्यकारी शक्तियां राज्यपाल के पास होती है और सभी कार्य उन्हीं के नाम से होते हैं। राज्यपाल विभिन्न कार्यकारी कार्यो के लिए महज अपनी सहमति देता है। भारतीय संविधान के मुताबिक, राज्यपाल स्वतंत्र रूप से कोई भी बड़ा निर्णय नहीं ले सकता है। राज्य की कार्यकारी शक्तियां मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के अधीन होती है।
संविधान के अनुसार, राज्यपाल राज्य स्तर पर संवैधानिक प्रमुख होता है। कार्यपालिका प्रमुख होने के नाते वह दोहरी भूमिका निभाता है-
- राज्य के प्रमुख के रूप में, तथा;
- केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में, जो केंद्र एवं राज्य के बीच कड़ी के रूप में काम करता है।
राज्यपाल की नियुक्ति
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पांच वर्ष के लिए की जाती है। अनुच्छेद 155 में कहा गया है कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उसके हस्ताक्षर तथा मुहर लगे हस्ताक्षर द्वारा की जाती है। जिस प्रकार कनाडा में राज्यपालों की नियुक्ति गवर्नर जनरल द्वारा होती है, उसी प्रकार भारत में राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में यह प्रावधान है कि भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा किंतु 1956 में किए गए संशोधन के अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुसार राज्यों में राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत अथवा नियुक्त किया जाता है अर्थात उसका निर्वाचन नहीं होता।
शपथ
राज्यपाल को शपथ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठ न्यायाधीश दिलायेगा।
राज्यपाल का कार्यकाल
संविधान के अनुच्छेद 156 में राज्यपाल के कार्यकाल के संदर्भ में जानकारी दी गई है। आमतौर पर राज्यपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। अनुच्छेद 156(1) में यह भी व्यवस्था है कि राज्यपाल तब तक अपने पद पर बना रह सकता है, जब तक कि राष्ट्रपति की इच्छा हो। इस तरह राष्ट्रपति राज्यपाल को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर सकता है अथवा उसी राज्य में फिर से नियुक्त कर सकता है अथवा राष्ट्रपति उसे किसी भी समय पद से हटा सकता है। अनुच्छेद 156 (2) के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति के पास अपना त्यागपत्र भेजकर पदमुक्त हो सकता है। अनुच्छेद 156(3) के अनुसार उपर्युक्त परिस्थितियों के अतिरिक्त, राज्यपाल अपनी नियुक्ति की तिथि से पांच वर्ष तक अपने पद पर बना रह सकता है।
राज्यपाल की योग्यताएं
अनुच्छेद 157 और 158 के अनुसार राज्यपाल पद के लिए योग्यता-
- भारत का नागरिक हो,
- उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
- संसद अथवा राज्य के विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य न हो,
- किसी भी लाभ के पद पर न हो,
- वह राज्य से बाहर का व्यक्ति हो,
- वह राज्य की स्थानीय राजनीति से घनिष्ठता से न जुड़ा हो, एवं;
- पिछले कुछ समय में उसने सक्रिय राजनीति में भाग न लिया हो।
वेतन और भत्ते
राज्यपाल का वेतन 1.10 लाख रुपये प्रतिमाह है। साथ ही राज्यपाल को निःशुल्क सरकारी आवास उपलब्ध कराया जाता है। वह वे सभी वेतन, भत्ते तथा ऐसे विशेषाधिकारों का उपभोग करने का अधिकारी है, जो राज्यपाल (परिलब्धियां, भत्ते एवं विशेषाधिकार) अधिनियम, 1982 में विनिर्दिष्ट हैं। 1987 में संशोधन द्वारा प्रावधान किया गया कि राज्यपाल की परिलब्धियां एवं भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे [अनुच्छेद 158(3)(4)]। राज्यपाल के वेतन और भत्ते राज्य की संचित निधि में से दिए जाते हैं।
राज्यपाल की न्यायिक सुविधाएं
राज्यपाल को कुछ न्यायिक सुविधाएं प्रदान की गई हैं, जो इस प्रकार हैं-
- वह अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन के संबंध में किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है;
- उसके कार्यकाल में उसके विरुद्ध फौजदारी अभियोग नहीं चलाया जा सकता;
- उसके कार्यकाल में उसे बंदी बनाने के लिए न्यायालय द्वारा आदेश जारी नहीं किया जा सकता;
- व्यक्ति रूप में राज्यपाल के विरुद्ध दीवानी अभियोग चलाया जा सकता है, परंतु इस उद्देश्य के लिए उसे दो मास की अग्रिम सूचना दी जानी अनिवार्य है।
राज्यपाल की शक्ति व कार्य
कार्यपालिका शक्तियाँ (Executive Powers)
अनुच्छेद 166 से पता चलता है कि राज्य में कार्यपालिका से सम्बंधित सभी कार्य उस राज्य के राज्यपाल के नाम से ही किये जाते हैं। अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्यपाल न केवल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है बल्कि उसकी सलाह पर राज्य की मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल राज्य की विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, परन्तु यदि किसी एक दल को बहुमत न मिला हो तो ऐसे गठबंधन दलों के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है जिसके द्वारा विधानसभा में बहुमत प्राप्त करने की सम्भावना होती है। वह मुख्यमंत्री की सलाह पर विभिन्न मंत्रियों के बीच मंत्रालयों का बंटवारा करता है।
- राज्यपाल, राज्य के महाधिवक्ता (Advocate-General) और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को भी नियुक्त करता है।
- राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श किया जाता है।
- अनुच्छेद 163 से पता चलता है कि राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में अपने कार्यों को पूरा करते समय राज्यपाल को राज्य की मंत्रिपरिषद, जिसका प्रधान मुख्य मंत्री होता है, के द्वारा सहायता और सलाह दी जाती है।
विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers)
चूँकि राज्यपाल, राज्य के विधानमंडल का अभिन्न अंग होता है इसलिए उसके पास कुछ विधायी शक्तियाँ भी होती हैं।
- राज्यपाल को राज्य के विधानमंडल के सत्र को बुलाने और समाप्त करने का अधिकार होता है। वह राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्य विधान सभा को भंग कर सकता है।
- अनुच्छेद 175 के अनुसार वह राज्य विधान सभा के सत्र को, और जिस राज्य में दो सदन हैं वहां दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित कर सकता है। वह किसी एक सदन या दोनों सदनों को अपना सन्देश भेज सकता है।
- अनुच्छेद 333 से पता चलता है कि यदि राज्य की विधान सभा के साधारण निर्वाचन के बाद राज्यपाल को यह लगता है की विधान सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व आवश्यक है और उसमे उस समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह विधान सभा में उस समुदाय के एक सदस्य को नाम-निर्देशित कर सकता है।
- यदि राज्य में विधान परिषद है तो राज्यपाल विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या के लगभग 1/6 भाग को नामनिर्देशित करता है। ये नामनिर्देशित सदस्य ऐसे होते हैं जिनको साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन या समाज सेवा का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है।
- राज्य के विधानमंडल के द्वारा पारित किसी भी बिल को क़ानून बनने के लिए राज्यपाल की सहमति जरूरी होती है। इस सन्दर्भ में, राज्यपाल के पास निम्नलिखित अधिकार होते हैं –
- वह बिल को अपनी सहमति दे सकता है, इस स्थिति में वह बिल कानून बन जाता है।
- वह बिल पर अपनी सहमति रोक सकता है, इस स्थिति में वह बिल कानून नहीं बन पाता।
- वह उस बिल को अपने सन्देश के साथ वापस भेज सकता है, परन्तु यदि विधानमंडल उस बिल को पुन: उसी रूप में या कुछ परिवर्तनों के साथ पारित कर देता है तो राज्यपाल को उस पर सहमति देना होगा।
- वह बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है।
इसके अतिरिक्त, राज्यपाल को उस समय जब राज्य का विधानमंडल सत्र में नहीं है तब अध्यादेश जारी करने की शक्ति होती है। हालाँकि राज्यपाल की यह शक्ति कुछ शर्तों के अधीन भी है जिनकी जानकारी अनुच्छेद 213 से मिलती है। ऐसे अध्यादेश को अगला सत्र आने पर विधानमंडल के सामने रखा जाता है और यदि विधानमंडल उसे पहले ही अस्वीकृत न कर दे तो वह अध्यादेश विधानमंडल के सत्र में आने की तारीख से (जहाँ दो सदन हैं वहाँ बाद वाले सदन के सत्र में आने की तारीख से) 6 सप्ताह में स्वयं ही निष्प्रभावी हो जाता है। वह राज्यपाल के द्वारा भी किसी भी समय वापस लिया जा सकता है। परन्तु विधानमंडल चाहे तो उस 6 सप्ताह की अवधि के दौरान उस अध्यादेश को पारित करके कानून का रूप देकर जारी रख सकता है।
वास्तव में राज्यपाल की कार्यपालिका शक्तियाँ की तरह ही उसकी विधायी शक्तियों का प्रयोग भी राज्य के विधानमंडल के माध्यम से किया जाता है जिसका मुखिया मुख्य मंत्री होता है।
वित्तीय शक्तियाँ (Financial Powers)
- राज्यपाल की पूर्व-अनुमति के बिना धन विधेयक को राज्य की विधान सभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
- राज्य के विधानमंडल में वार्षिक और पूरक बजट राज्यपाल के नाम से ही प्रस्तुत किये जाते हैं।
- राज्य की आकस्मिकता निधि पर राज्य के राज्यपाल का नियंत्रण होता है।
राज्यपाल की क्षमा करने आदि की शक्ति (न्यायिक शक्ति) (Power of Pardon)
अनुच्छेद 161 में उपबंध है जिन विषयों पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का नियंत्रण होता है उन विषयों से सम्बंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध करने वाले किसी व्यक्ति को प्राप्त दंड को राज्यपाल क्षमा कर सकता है, या उसके दंड को कम कर सकता है, या उसके दंड को कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है।
परन्तु राज्यपाल को संघ द्वारा निर्मित किसी क़ानून के विरुद्ध अपराध करने वाले किसी व्यक्ति को प्राप्त दंड को क्षमा करने, कम करने या स्थगित करने आदि की शक्ति नहीं होती है। राज्यपाल के पास मृत्यु दंड को क्षमा करने की भी शक्ति नहीं है।
राज्यपाल की पदेन भूमिका
- राज्यपाल राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होंगे तथा वे सम्बन्धित विश्वविद्यालयों के अधिनियमों एवं परिनियमों के अन्तर्गत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करेंगे।
- राज्यपाल भारतीय रेडक्रास सोसायटी और राज्य बाल कल्याण परिषद के पदेन अध्यक्ष होंगे।
- राज्यपाल सैनिक पुर्नवास संस्था के अध्यक्ष होंगे।
कब हटाये जा सकते हैं राज्यपाल
राज्यपाल का कार्यकाल पांच साल का होता है, लेकिन अगर सरकार की मंशा के अनुरूप वे इस्तीफा नहीं देते, तो इन परिस्थितियों में उन्हें बरखास्त किया जा सकता है।
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