Rajasthan RBSE Class 10 Science Board Paper 2018 English Medium
समय : 3.15 घंटे
पूर्णांक : 80
परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश
- परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न-पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
- सभी प्रश्न करने अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर-पुस्तिका में ही लिखें।
- जिन प्रश्नों में आन्तरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।
- प्रश्न-पत्र के हिन्दी व अंग्रेजी रूपांतर में किसी प्रकार की त्रुटि/अंतर/विरोधाभास होने पर हिन्दी भाषा के प्रश्न को सही मानें।
- खण्ड प्रश्न संख्या अंक प्रत्येक प्रश्न
- प्रश्न क्रमांक 27 से 30 में आन्तरिक विकल्प हैं।
खण्ड : अ
प्रश्न 1.
लार ग्रंथि द्वारा स्रावित एन्जाइम का नाम लिखिए। [1]
लार ग्रंथि द्वारा स्रावित एन्जाइम का नाम लिखिए। [1]
प्रश्न 2.
सर्वदाता रक्त समूह का नाम लिखिए। [1]
सर्वदाता रक्त समूह का नाम लिखिए। [1]
प्रश्न 3.
एल्काइन श्रेणी का सामान्य सूत्र लिखिए। [1]
एल्काइन श्रेणी का सामान्य सूत्र लिखिए। [1]
प्रश्न 4.
एक किलोवाट घंटा (1KWH) में जूल मात्रकों की संख्या लिखिए। [1]
एक किलोवाट घंटा (1KWH) में जूल मात्रकों की संख्या लिखिए। [1]
प्रश्न 5.
मनाली अभयारण्य किस राज्य में स्थित है? [1]
मनाली अभयारण्य किस राज्य में स्थित है? [1]
प्रश्न 6.
खरीफ की एक फसल का नाम लिखिए। [1]
खरीफ की एक फसल का नाम लिखिए। [1]
प्रश्न 7.
विश्व में जैव विविधता के कुल कितने तप्त स्थल हैं? [1]
विश्व में जैव विविधता के कुल कितने तप्त स्थल हैं? [1]
प्रश्न 8.
रक्तचाप मापने वाले यंत्र का नाम लिखिये। [1]
रक्तचाप मापने वाले यंत्र का नाम लिखिये। [1]
प्रश्न 9.
माँ के दूध में पाये जाने वाले प्रतिरक्षी का नाम लिखिए। [1]
माँ के दूध में पाये जाने वाले प्रतिरक्षी का नाम लिखिए। [1]
प्रश्न 10.
गर्भ रक्ताणुकोरकता रोग के उपचार में कौनसे टीके का उपयोग किया जाता है? [1]
गर्भ रक्ताणुकोरकता रोग के उपचार में कौनसे टीके का उपयोग किया जाता है? [1]
प्रश्न 11.
एक ही पदार्थ व समान लम्बाई के विभिन्न चालक तारों के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) एवं प्रतिरोध के ‘मध्ये ग्राफ (आरेख) बनाइये। [1]
एक ही पदार्थ व समान लम्बाई के विभिन्न चालक तारों के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) एवं प्रतिरोध के ‘मध्ये ग्राफ (आरेख) बनाइये। [1]
खण्ड : ब
प्रश्न 12.
पृथ्वी की आन्तरिक विवर्तनिक शक्तियाँ किसे कहते हैं ? किन्हीं दो शक्तियों को समझाइये। [3]
पृथ्वी की आन्तरिक विवर्तनिक शक्तियाँ किसे कहते हैं ? किन्हीं दो शक्तियों को समझाइये। [3]
प्रश्न 13.
जीवाश्म किसे कहते हैं? मानव शरीर में पाये जाने वाले दो अवशेषांगों के नाम लिखिए। [3]
जीवाश्म किसे कहते हैं? मानव शरीर में पाये जाने वाले दो अवशेषांगों के नाम लिखिए। [3]
प्रश्न 14.
भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यान का नाम लिखिए। भारत द्वारा छोड़ गये उपग्रहों का महत्त्व समझाइये। [3]
भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यान का नाम लिखिए। भारत द्वारा छोड़ गये उपग्रहों का महत्त्व समझाइये। [3]
प्रश्न 15.
(अ) श्वास विश्लेषक द्वारा शरीर में कितनी मात्रा में एल्कोहल पाया जाता है, जो दण्डनीय है? [3]
(ब) “सड़क सुरक्षा शिक्षा” के बिन्दुओं को समझाइये।
(अ) श्वास विश्लेषक द्वारा शरीर में कितनी मात्रा में एल्कोहल पाया जाता है, जो दण्डनीय है? [3]
(ब) “सड़क सुरक्षा शिक्षा” के बिन्दुओं को समझाइये।
प्रश्न 16.
(अ) विषाणुजनित कोई दो रोगों के नाम लिखिए। [3]
(ब) तम्बाकू में पाये जाने वाले एल्केलॉयड का नाम लिखिए।
(स) तम्बाकू चबाने से होने वाली दो हानियाँ लिखिए।
(अ) विषाणुजनित कोई दो रोगों के नाम लिखिए। [3]
(ब) तम्बाकू में पाये जाने वाले एल्केलॉयड का नाम लिखिए।
(स) तम्बाकू चबाने से होने वाली दो हानियाँ लिखिए।
प्रश्न 17.
निम्नलिखित में कोई एक अन्तर लिखिए [3]
(अ) धनात्मक एवं ऋणात्मक उत्प्रेरक।
(ब) ऊष्मीय-अपघटन एवं विद्युत अपघटन।
(स) संकलन एवं विस्थापन अभिक्रिया।
निम्नलिखित में कोई एक अन्तर लिखिए [3]
(अ) धनात्मक एवं ऋणात्मक उत्प्रेरक।
(ब) ऊष्मीय-अपघटन एवं विद्युत अपघटन।
(स) संकलन एवं विस्थापन अभिक्रिया।
प्रश्न 18.
झूम खेती से क्या तात्पर्य है? सामाजिक वानिकी के दो प्रमुख घटकों के नाम लिखिए। [3]
झूम खेती से क्या तात्पर्य है? सामाजिक वानिकी के दो प्रमुख घटकों के नाम लिखिए। [3]
प्रश्न 19.
‘मिसाइल मैन’ के नाम से किसे जाना जाता है? डॉ. पंचानन माहेश्वरी का वनस्पति विज्ञान में योगदान लिखिए। [3]
‘मिसाइल मैन’ के नाम से किसे जाना जाता है? डॉ. पंचानन माहेश्वरी का वनस्पति विज्ञान में योगदान लिखिए। [3]
प्रश्न 20.
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए [3]
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निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए [3]
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प्रश्न 21.
अपशिष्ट किसे कहते हैं? अपशिष्ट प्रबंधन के दो तरीकों को समझाइये। [3]
अपशिष्ट किसे कहते हैं? अपशिष्ट प्रबंधन के दो तरीकों को समझाइये। [3]
खण्ड : स
प्रश्न 22.
(अ) रेशम कीट के लार्वा का नाम लिखिए। [4]
(ब) मधुमक्खी पालन से प्राप्त दो उत्पादों को लिखिए।
(स) रेशम कीट द्वारा रेशम का धागा कैसे बनाया जाता है?
(अ) रेशम कीट के लार्वा का नाम लिखिए। [4]
(ब) मधुमक्खी पालन से प्राप्त दो उत्पादों को लिखिए।
(स) रेशम कीट द्वारा रेशम का धागा कैसे बनाया जाता है?
प्रश्न 23.
व्युत्क्रम संकरण क्या है? जब F1 पीढ़ी का संकरण प्रभावी समयुग्मज़ी जनक से कराया जाता है, तो प्राप्त संतति में लक्षण प्ररूप व जीनी प्ररूप अनुपात को समझाइये। [4]
व्युत्क्रम संकरण क्या है? जब F1 पीढ़ी का संकरण प्रभावी समयुग्मज़ी जनक से कराया जाता है, तो प्राप्त संतति में लक्षण प्ररूप व जीनी प्ररूप अनुपात को समझाइये। [4]
प्रश्न 24.
(अ) विरंजक चूर्ण का सूत्र लिखिए। इसकी विरंजन क्रिया को समझाइये। [4]
(ब) Zn धातु की तनु H2SO4, से होने वाली रासायनिक अभिक्रिया का नामांकित चित्र बनाइये।
(अ) विरंजक चूर्ण का सूत्र लिखिए। इसकी विरंजन क्रिया को समझाइये। [4]
(ब) Zn धातु की तनु H2SO4, से होने वाली रासायनिक अभिक्रिया का नामांकित चित्र बनाइये।
प्रश्न 25.
(अ) ओम के नियम का प्रयोग करते समय एक प्रेक्षक निम्नानुसार दो प्रेक्षण प्राप्त करता है [4]
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प्रत्येक प्रेक्षण के लिए चालक तार का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
(ब) 25Ω की नाइ क्रोम की प्रतिरोध कुण्डली को 12 वोल्ट के संचायक सेल ( बैटरी) से जोड़ते हैं एवं इसमें 15 मिनट तक विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। कुण्डली में उत्पन्न ऊमा का मान ज्ञात कीजिये।
(अ) ओम के नियम का प्रयोग करते समय एक प्रेक्षक निम्नानुसार दो प्रेक्षण प्राप्त करता है [4]
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प्रत्येक प्रेक्षण के लिए चालक तार का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
(ब) 25Ω की नाइ क्रोम की प्रतिरोध कुण्डली को 12 वोल्ट के संचायक सेल ( बैटरी) से जोड़ते हैं एवं इसमें 15 मिनट तक विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। कुण्डली में उत्पन्न ऊमा का मान ज्ञात कीजिये।
प्रश्न 26.
(अ) 10 kg की एक वस्तु पर एक बल लगाने से इसका वेग 1 मीटर/सेकण्ड से बढ़कर 2 मीटर/सेकण्ड हो जाता है। बल द्वारा किया गया कार्य ज्ञात कीजिए। [4]
(ब) K = 4 x 103 N/m सिंप्रग नियतांक की एक स्प्रिंग को 2 सेमी संपीड़ित करने में सिंप्रग में संचित स्थितिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
(अ) 10 kg की एक वस्तु पर एक बल लगाने से इसका वेग 1 मीटर/सेकण्ड से बढ़कर 2 मीटर/सेकण्ड हो जाता है। बल द्वारा किया गया कार्य ज्ञात कीजिए। [4]
(ब) K = 4 x 103 N/m सिंप्रग नियतांक की एक स्प्रिंग को 2 सेमी संपीड़ित करने में सिंप्रग में संचित स्थितिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
प्रश्न 27.
जैव विविधता किसे कहते हैं? स्वस्थाने व बहि:स्थाने संरक्षण को समझाइये। [4]
अथवा
आनुवांशिक विविधता क्या हैं ? जैव-विविधता संकट के दो कारणों को समझाइये।
जैव विविधता किसे कहते हैं? स्वस्थाने व बहि:स्थाने संरक्षण को समझाइये। [4]
अथवा
आनुवांशिक विविधता क्या हैं ? जैव-विविधता संकट के दो कारणों को समझाइये।
खण्ड : द
प्रश्न 28.
(अ) श्वसन किसे कहते हैं? [5]
(ब) मानव श्वसन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये।
(स) श्वसन की क्रियाविधि समझाइये।
अथवा
(अ) मादाओं के प्राथमिक लैंगिक अंग का नाम लिखिए।
(ब) मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये।
(स) मानव प्रजनन की दो अवस्थाओं को समझाइये।
(अ) श्वसन किसे कहते हैं? [5]
(ब) मानव श्वसन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये।
(स) श्वसन की क्रियाविधि समझाइये।
अथवा
(अ) मादाओं के प्राथमिक लैंगिक अंग का नाम लिखिए।
(ब) मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये।
(स) मानव प्रजनन की दो अवस्थाओं को समझाइये।
प्रश्न 29.
(अ) आवर्त सारणी में किस ब्लॉक के तत्त्व परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं? [5]
(ब) ऋणायन का आकार अपने संगत परमाणु से बड़ा होता है, क्यों?
(स) CaH2, NaH, SiH4, AlH3 उपर्युक्त यौगिकों में Ca, Na, Si और Al की संयोजकता बताइये।
अधवा
(अ) किन्हीं दो उपधातुओं के नाम लिखिए। [5]
(ब) किसी आवर्त में बायें से दाये जाने पर परमाणु आकार किस प्रकार परिवर्तित होता है? कारण सहित समझाइये।
(स) निम्नलिखित तत्त्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु आकार के क्रम में व्यवस्थित कीजिए Na, Cs, Li, K
(अ) आवर्त सारणी में किस ब्लॉक के तत्त्व परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं? [5]
(ब) ऋणायन का आकार अपने संगत परमाणु से बड़ा होता है, क्यों?
(स) CaH2, NaH, SiH4, AlH3 उपर्युक्त यौगिकों में Ca, Na, Si और Al की संयोजकता बताइये।
अधवा
(अ) किन्हीं दो उपधातुओं के नाम लिखिए। [5]
(ब) किसी आवर्त में बायें से दाये जाने पर परमाणु आकार किस प्रकार परिवर्तित होता है? कारण सहित समझाइये।
(स) निम्नलिखित तत्त्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु आकार के क्रम में व्यवस्थित कीजिए Na, Cs, Li, K
प्रश्न 30.
(अ) सूर्योदय से कुछ समय पहले एवं सूर्यास्त के कुछ समय पश्चात् तक सूर्य दिखाई देता है, कारण स्पष्ट कीजिए। [5]
(ब) श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण से क्या अभिप्राय है?
(स) प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है?
(द) एक अवतल लैंस से प्रतिबिम्ब का बनना, दशांने का किरण चित्र बनाइये, जबकि बिम्ब अनन्त एवं इसके प्रकाशिक केन्द्र ‘O’ के मध्य स्थित हो।
अथवा
(अ) पानी से भरे काँच के पात्र में आंशिक डूबी हुई कोई पेंसिल तिरछी दिखाई देती है, क्यों?
(ब) लैंस की क्षमता से क्या अभिप्राय है?
(स) मानव नेत्र में दृष्टि वैषम्य दोष क्या है?
(द) एक अवतल दर्पण से प्रतिबिम्ब का बनना, दशांने का किरण चित्र बनाइये, जबकि बिम्ब इसके वक्रता केन्द्र ‘C’व फोकस ‘F’ के मध्य स्थित हो।
(अ) सूर्योदय से कुछ समय पहले एवं सूर्यास्त के कुछ समय पश्चात् तक सूर्य दिखाई देता है, कारण स्पष्ट कीजिए। [5]
(ब) श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण से क्या अभिप्राय है?
(स) प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है?
(द) एक अवतल लैंस से प्रतिबिम्ब का बनना, दशांने का किरण चित्र बनाइये, जबकि बिम्ब अनन्त एवं इसके प्रकाशिक केन्द्र ‘O’ के मध्य स्थित हो।
अथवा
(अ) पानी से भरे काँच के पात्र में आंशिक डूबी हुई कोई पेंसिल तिरछी दिखाई देती है, क्यों?
(ब) लैंस की क्षमता से क्या अभिप्राय है?
(स) मानव नेत्र में दृष्टि वैषम्य दोष क्या है?
(द) एक अवतल दर्पण से प्रतिबिम्ब का बनना, दशांने का किरण चित्र बनाइये, जबकि बिम्ब इसके वक्रता केन्द्र ‘C’व फोकस ‘F’ के मध्य स्थित हो।
उत्तर
खण्ड : अ
खण्ड : अ
उत्तर 1.
लार ग्रंथि द्वारा स्रावित एन्जाइम का नाम टायलिन है।
लार ग्रंथि द्वारा स्रावित एन्जाइम का नाम टायलिन है।
उत्तर 2.
सर्वदाता रक्त समूह का नाम ‘O’ है।
सर्वदाता रक्त समूह का नाम ‘O’ है।
उत्तर 3.
एल्काइन श्रेणी का सामान्य सूत्र – Cn H2n – 2
एल्काइन श्रेणी का सामान्य सूत्र – Cn H2n – 2
उत्तर 4.
3.6 x 106 जूल।
3.6 x 106 जूल।
उत्तर 5.
मनाली अभयारण्य हिमाचल प्रदेश में स्थित है।
मनाली अभयारण्य हिमाचल प्रदेश में स्थित है।
उत्तर 6.
खरीफ की एक फसल का नाम चावल है।
खरीफ की एक फसल का नाम चावल है।
उत्तर 7.
विश्व में जैव-विविधता के 34 तप्त स्थल हैं।
विश्व में जैव-विविधता के 34 तप्त स्थल हैं।
उत्तर 8.
रक्तचापमापी।
रक्तचापमापी।
उत्तर 9.
माँ के दूध में पाये जाने वाले प्रतिरक्षी का नाम IgA है।
माँ के दूध में पाये जाने वाले प्रतिरक्षी का नाम IgA है।
उत्तर 10.
गर्भ रक्ताणुकोरकता रोग के उपचार में Ig,G का टीका लगाया जाता है।
गर्भ रक्ताणुकोरकता रोग के उपचार में Ig,G का टीका लगाया जाता है।
उत्तर 11.
ग्राफ (आरेख)
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ग्राफ (आरेख)
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खण्ड : ब
उत्तर 12.
आन्तरिक विवर्तनिक शक्तियाँ :
ये वे शक्तियाँ हैं। जो पृथ्वी के अन्दर रहकर कार्य करती हैं, बाहर से दिखाई नहीं देती हैं। इनकी उत्पत्ति पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में उपस्थित ताप से चट्टानों क फैलने-सिकुड़ने व पृथ्वी के भीतर उपस्थित गर्म तरल पदार्थ मैग्मा के स्थानान्तरण आदि के कारण होती हैं।
आन्तरिक विवर्तनिक शक्तियाँ :
ये वे शक्तियाँ हैं। जो पृथ्वी के अन्दर रहकर कार्य करती हैं, बाहर से दिखाई नहीं देती हैं। इनकी उत्पत्ति पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में उपस्थित ताप से चट्टानों क फैलने-सिकुड़ने व पृथ्वी के भीतर उपस्थित गर्म तरल पदार्थ मैग्मा के स्थानान्तरण आदि के कारण होती हैं।
दो आन्तरिक विवर्तनिक शक्तियाँ निम्न हैं
(1) ज्वालामुखी :
आन्तरिक विवर्तनिक शक्तियों का एक प्रभाव ज्वालामुखी है। इसमें पृथ्वी के अंदर होने वाली हलचल के कारण धरती हिलने लगती है और भूपटल को फोड़कर धुआँ, राख, वाष्प और गैसें बाहर निकलने लगती हैं। दाब के कारण लावा एक नली के रूप में सतह की ओर ऊपर उठ जाता है और फिर बाहर निकल कर फैलने लगता है। ज्वालामुखी विवर्तनिक प्लेटों से संबंधित हैं, क्योंकि ये ज्यादातर, प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाये जाते हैं।
(1) ज्वालामुखी :
आन्तरिक विवर्तनिक शक्तियों का एक प्रभाव ज्वालामुखी है। इसमें पृथ्वी के अंदर होने वाली हलचल के कारण धरती हिलने लगती है और भूपटल को फोड़कर धुआँ, राख, वाष्प और गैसें बाहर निकलने लगती हैं। दाब के कारण लावा एक नली के रूप में सतह की ओर ऊपर उठ जाता है और फिर बाहर निकल कर फैलने लगता है। ज्वालामुखी विवर्तनिक प्लेटों से संबंधित हैं, क्योंकि ये ज्यादातर, प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाये जाते हैं।
ज्वालामुखी के प्रकार :
ज्वालामुखी को सक्रियता के आधार पर तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है
ज्वालामुखी को सक्रियता के आधार पर तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है
- सक्रिय ज्वालामुखी – वे ज्वालामुखी जो वर्तमान में फट रहे हों या जो फट सकते हों।
- मृत ज्वालामुखी – चे ज्वालामुखी जिनमें लावा व मैग्मा खत्म हो चुका है और जिनके फटने की कोई आशंका नहीं है।
- सुप्त ज्वालामुखी – वे ज्वालामुखी जिन्हें फटने के बाद अगला विस्फोट होने में लाखों साल गुजर जाते हैं।
(2) भूकम्प भूकम्प का अर्थ हैं :
सतह का कम्पन। कम्पन का कारण भू-गर्भ में होने वाली हलचल होती है। जहाँ की हलचल से कंपन प्रारम्भ होते हैं, उसे कम्पन केन्द्र (एपीसेन्टर) कहते हैं। भूकम्प का महत्व उसकी तीव्रता पर निर्भर करता है। भूकम्प को भूकम्पमापी द्वारा मापा जाता हैं। भूकम्प की तीव्रता को रिक्टर पैमाने पर व्यक्त किया जाता है।
सतह का कम्पन। कम्पन का कारण भू-गर्भ में होने वाली हलचल होती है। जहाँ की हलचल से कंपन प्रारम्भ होते हैं, उसे कम्पन केन्द्र (एपीसेन्टर) कहते हैं। भूकम्प का महत्व उसकी तीव्रता पर निर्भर करता है। भूकम्प को भूकम्पमापी द्वारा मापा जाता हैं। भूकम्प की तीव्रता को रिक्टर पैमाने पर व्यक्त किया जाता है।
भूकम्प की आपत्ति का कारण पृथ्वी के अंदर बनावट में असंतुलन होता है। यह असंतुलन प्रकृति या मनुष्य द्वारा बनाए जलाशयों के दाय या विस्फोट आदि से भी हो सकता है । पृथ्वी की सतह 29 प्लेटों में बंटी है। ये प्लेटें धीरे-धीरे गति करती हैं। सभी विवर्तनिक घटनाएँ इन प्लेटों के किनारे होती हैं। किनारे तीन प्रकार के होते हैं-रचनात्मक, विनाशी और संरक्षी। विनाशी किनारों पर अधिक परिमाण के भूकम्प आते हैं। ये विनाशक होते हैं।
उत्तर 13.
जीवाश्म :
प्राचीन जीवों की निशानियों को ही जीवाश्म कहते हैं। लाखों वर्ष पहले जीवों के मिट्टी या अन्य पदार्थ में दब जाने से जीवाश्म बने हैं। मानव शरीर में पाये जाने वाले दो अवशेषांग के नाम निम्न
जीवाश्म :
प्राचीन जीवों की निशानियों को ही जीवाश्म कहते हैं। लाखों वर्ष पहले जीवों के मिट्टी या अन्य पदार्थ में दब जाने से जीवाश्म बने हैं। मानव शरीर में पाये जाने वाले दो अवशेषांग के नाम निम्न
- अक्ल दाढ़।
- आँत में पाई जाने वाली एपेंडिक्स।
उत्तर 14.
भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यान का नाम आर्यभट्ट है।
उपग्रहों का महत्त्व :
उपग्रहों के महत्त्व का अध्ययन निम्न प्रकार से है।
भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यान का नाम आर्यभट्ट है।
उपग्रहों का महत्त्व :
उपग्रहों के महत्त्व का अध्ययन निम्न प्रकार से है।
(1) पर्यावरण के क्षेत्र में :
कृत्रिम उपग्रह द्वारा वादलों के चित्र, वायुमण्डल सम्बन्धी जानकारी, ओजोन परत में होद जैसी कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। ध्रुवीय उपग्रह से प्राप्त सूचनाएँ सुदूर संवेदन (Remote Sensing), मौसम विज्ञान तथा पर्यावरण सम्बन्धी अध्ययन के लिए उपयोगी हैं।
कृत्रिम उपग्रह द्वारा वादलों के चित्र, वायुमण्डल सम्बन्धी जानकारी, ओजोन परत में होद जैसी कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। ध्रुवीय उपग्रह से प्राप्त सूचनाएँ सुदूर संवेदन (Remote Sensing), मौसम विज्ञान तथा पर्यावरण सम्बन्धी अध्ययन के लिए उपयोगी हैं।
(2) दूरसंचार के क्षेत्र में :
कृत्रिम उपग्रह दूरसंचार के साधनों, जैसे – टेलीफोन, मोबाइल, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि से तरंगें प्राप्त करता है और इन्हें पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर भेजता है।
कृत्रिम उपग्रह दूरसंचार के साधनों, जैसे – टेलीफोन, मोबाइल, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि से तरंगें प्राप्त करता है और इन्हें पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर भेजता है।
(3) कृषि क्षेत्र में :
कृषि क्षेत्र में कृत्रिम उपग्रह निम्न योगदान देते हैं
कृषि क्षेत्र में कृत्रिम उपग्रह निम्न योगदान देते हैं
- फसल के क्षेत्रफल एवं उत्पादन का आकलन करना।
- सूखा एवं बाढ़ की चेतावनी देना था उनसे होने वाली हानि का पता करना।
- भूमिगत जल की खोज करके जल संसाधनों का प्रबन्धन
(4) रक्षा क्षेत्र में :
कृत्रिम उपग्रह रक्षा क्षेत्र में भी प्रमुख योगदान देते हैं
कृत्रिम उपग्रह रक्षा क्षेत्र में भी प्रमुख योगदान देते हैं
- हवाईअड्डों, बंदरगाहों तथा सैनिक ठिकानों की निगरानी रखना जिससे उनकी सुरक्षा के प्रबन्ध में आसानी हो।
- सैनिक गतिविधियों की जासूसी करना।
- वायुयान, जहाज, व्यक्ति अथवा वस्तु के सही स्थान का पता लगाना।
- GPS द्वारा शत्रु के विमानों पर निगरानी रखना।
उत्तर 15.
(अ) श्वास विश्लेषक द्वारा शरीर में 100 ml में 30 mg से अधिक मात्रा में एल्कोहल पाया जाना, दण्डनीय है।
(ब) सड़क सुरक्षा शिक्षा–सड़क सुरक्षा शिक्षा के बिन्दु निम्न हैं।
(अ) श्वास विश्लेषक द्वारा शरीर में 100 ml में 30 mg से अधिक मात्रा में एल्कोहल पाया जाना, दण्डनीय है।
(ब) सड़क सुरक्षा शिक्षा–सड़क सुरक्षा शिक्षा के बिन्दु निम्न हैं।
- मोटर व्हीकल एक्ट के अनुच्छेद 185 में एल्कोहॉल का सेवन किए गए वाहन चालक पर दण्ड का प्रावधान है।
- रात्रि में या कम दिखाई देने की स्थिति में वाहन चालक को ड्राइविंग नहीं करनी चाहिए।
- कम दृश्यता के दौरान कोहरे में वाहन चलाते समय Fog lamps व डिपर का प्रयोग करना चाहिए।
- वाहन चलाते समय यातायात संकेतों का पालन करना चाहिए।
- मोटर वाहन कानून 1988 के अन्तर्गत धारा 184 में ड्राइविंग करते हुए मोबाइल फोन के प्रयोग पर 6 माह का कारावास एवं 1000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
उत्तर 16.
(अ) विषाणुजनित दो रोगों के नाम-टाइफाइड और पीलिया।
(ब) तम्बाकू में पाये जाने वाले एल्केलॉयड का नाम निकोटिन
(स) तम्बाकू से होने वाली दो हानियाँ
(अ) विषाणुजनित दो रोगों के नाम-टाइफाइड और पीलिया।
(ब) तम्बाकू में पाये जाने वाले एल्केलॉयड का नाम निकोटिन
(स) तम्बाकू से होने वाली दो हानियाँ
- तम्बाकू के सेवन से मुँह, जीभ, गले व फेफड़ों आदि का केसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
- तम्बाकू में पाये जाने वाला निकोटिन धमनियों की दीवारों को मोटा कर देता है जिससे रक्तदाब (B.P) व हृदय स्पंदन (Heart beat) की दर बढ़ जाती है।
उत्तर 17.
(अ) धनात्मक एवं ऋणात्मक उत्प्रेरक
धनात्मक उत्प्रेरक :
जह उत्प्रेरक जो अभिक्रिया की गति को बढ़ाता है, धनात्मक उत्प्रेरक कहलाता है। मैंगनीज डाइऑक्साइड धनात्मक उत्प्रेरक का उदाहरण है।
ऋणात्मक उत्प्रेरक :
वे उत्प्रेरक जो रासायनिक अभिक्रिया के वेग को कम करते हैं, ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं। H_0, का ग्लिसरीन की उपस्थिति में अपघटन कम हो जाता है
(ब) ऊष्मीय अपघटन एवं विद्युत अपघटन
विद्युत अपघटन :
इस प्रकार की अपघटन अभिक्रिया में किसी यौगिक की गलित या द्रव अवस्था में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती हैं। तो वह अपघटित हो जाता है।
उदाहरण :

जल का विद्युत अपघटन करने पर हाइड्रोजन व ऑक्सीजन गैस बनती है।
ऊष्मीय अपघटन :
इस प्रकार की अपघटन अभिक्रियाओं में यौगिक को ऊष्मा देने पर वह छोटे अणुओं में टूट जाता है।
उदाहरण :

कैल्शियम कार्बोनेट 473 K तक गर्म करने पर अपघटित होकर कैल्शियम ऑक्साइड व CO2 बनाता है।
(अ) धनात्मक एवं ऋणात्मक उत्प्रेरक
धनात्मक उत्प्रेरक :
जह उत्प्रेरक जो अभिक्रिया की गति को बढ़ाता है, धनात्मक उत्प्रेरक कहलाता है। मैंगनीज डाइऑक्साइड धनात्मक उत्प्रेरक का उदाहरण है।
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वे उत्प्रेरक जो रासायनिक अभिक्रिया के वेग को कम करते हैं, ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं। H_0, का ग्लिसरीन की उपस्थिति में अपघटन कम हो जाता है
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विद्युत अपघटन :
इस प्रकार की अपघटन अभिक्रिया में किसी यौगिक की गलित या द्रव अवस्था में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती हैं। तो वह अपघटित हो जाता है।
उदाहरण :
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जल का विद्युत अपघटन करने पर हाइड्रोजन व ऑक्सीजन गैस बनती है।
ऊष्मीय अपघटन :
इस प्रकार की अपघटन अभिक्रियाओं में यौगिक को ऊष्मा देने पर वह छोटे अणुओं में टूट जाता है।
उदाहरण :

कैल्शियम कार्बोनेट 473 K तक गर्म करने पर अपघटित होकर कैल्शियम ऑक्साइड व CO2 बनाता है।
(स) संकलन एवं विस्थापन अभिक्रिया
संकलन अभिक्रिया :
ऐसी रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें दो या दो से अधिक अभिकारक आपस में संयोग करके एक ही उत्पाद बनाते हैं, संकलन अभिक्रिया कहलाती है। जैसे
कोयल का दहन –

विस्थापन अभिक्रिया :
ऐसी रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें एक अभिकारक में उपस्थित परमाणु या परमाणु का समूह दूसरे अभिकारक के परमाणु या परमाणु समूह द्वारा विस्थापित हो जाता है, विस्थापन अभिक्रिया कहलाती है। जैसे

संकलन अभिक्रिया :
ऐसी रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें दो या दो से अधिक अभिकारक आपस में संयोग करके एक ही उत्पाद बनाते हैं, संकलन अभिक्रिया कहलाती है। जैसे
कोयल का दहन –
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विस्थापन अभिक्रिया :
ऐसी रासायनिक अभिक्रियाएँ जिनमें एक अभिकारक में उपस्थित परमाणु या परमाणु का समूह दूसरे अभिकारक के परमाणु या परमाणु समूह द्वारा विस्थापित हो जाता है, विस्थापन अभिक्रिया कहलाती है। जैसे
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उत्तर 18.
झूम खेती :
वनों के विनाश में झूम खेती का अहम् योगदान है। इस प्रकार की खेती आदिवासी करते हैं। झूम खेती के अन्तर्गत किसी क्षेत्र विशेष की वनस्पति को जलाकर राख कर दी जाती है, जिससे वहाँ की भूमि की उर्वरता बढ़ जाती है तथा आदिवासी दोतीन वर्षों तक अच्छी फसल प्राप्त कर लेते हैं। उर्वरता कम होने पर उस स्थान को छोड़ देते हैं तथा यही विधि अन्य स्थान पर फिर से अपनाई जाती है। हमारे देश में नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल, त्रिपुरा तथा आसाम में आदिवासी झूम खेती को अपनाते हैं।
सामाजिक वानिकी के दो प्रमुख घटकों के नाम
झूम खेती :
वनों के विनाश में झूम खेती का अहम् योगदान है। इस प्रकार की खेती आदिवासी करते हैं। झूम खेती के अन्तर्गत किसी क्षेत्र विशेष की वनस्पति को जलाकर राख कर दी जाती है, जिससे वहाँ की भूमि की उर्वरता बढ़ जाती है तथा आदिवासी दोतीन वर्षों तक अच्छी फसल प्राप्त कर लेते हैं। उर्वरता कम होने पर उस स्थान को छोड़ देते हैं तथा यही विधि अन्य स्थान पर फिर से अपनाई जाती है। हमारे देश में नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल, त्रिपुरा तथा आसाम में आदिवासी झूम खेती को अपनाते हैं।
सामाजिक वानिकी के दो प्रमुख घटकों के नाम
- कृषि वानिकी।
- ग्रामीणों द्वारा सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण।
उत्तर 19.
‘मिसाइल मैन’ के नाम से डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को जाना जाता है।
डॉ. पंचानन माहेश्वरी का वनस्पति विज्ञान में योगदान :
डॉ, माहेश्वरी ने पादप भ्रूण विज्ञान पर विशेष कार्य किया। इन्होंने भ्रूण विज्ञान और पादप क्रिया विज्ञान के सहमिश्रण यण से एक नई शाखा का विकास किया एवं इससे फूलों के विभिन्न भागों की कृत्रिम पोषण द्वारा वृद्धि कराने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की।
‘मिसाइल मैन’ के नाम से डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को जाना जाता है।
डॉ. पंचानन माहेश्वरी का वनस्पति विज्ञान में योगदान :
डॉ, माहेश्वरी ने पादप भ्रूण विज्ञान पर विशेष कार्य किया। इन्होंने भ्रूण विज्ञान और पादप क्रिया विज्ञान के सहमिश्रण यण से एक नई शाखा का विकास किया एवं इससे फूलों के विभिन्न भागों की कृत्रिम पोषण द्वारा वृद्धि कराने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की।
उत्तर 20.
(अ) 2 – मेथिल प्रोपीन।
(च) 2 – ब्यूटीन।
(स) 2 – क्लोरो ब्यूटेन।
(अ) 2 – मेथिल प्रोपीन।
(च) 2 – ब्यूटीन।
(स) 2 – क्लोरो ब्यूटेन।
उत्तर 21.
अपशिष्ट
किसी भी प्रक्रम के अन्त में बनने वाले अनुपयोगी पदार्थों या उत्पादों को अपशिष्ट कहते हैं। अपशिष्ट प्रबंधन के दो तरीके निम्न हैं
अपशिष्ट
किसी भी प्रक्रम के अन्त में बनने वाले अनुपयोगी पदार्थों या उत्पादों को अपशिष्ट कहते हैं। अपशिष्ट प्रबंधन के दो तरीके निम्न हैं
(1) भूमि भराव :
भूमि भाव अधिकांशत: गैर-उपयोग की खानों, खनन रिक्तियों आदि क्षेत्रों में बनाये जाते हैं। यह अपशिष्ट निपटान का एक बहुत ही साफ और अपेक्षाकृत कम खर्च वाला तरीका है तथा अधिकतर देशों में यह आम चलन है। आधुनिक समय में भूमि भराव द्वारा नियोजित तरीकों से अपशिष्ट का निष्पादन किया जाता हैं। गड्ढों को मिट्टी से भर देते हैं और भूमि भराव गैस निकासी के लिए भूमि भराव गैस प्रणाली स्थापित की जा सकती है। इस गैस को एकत्रित कर विद्युत उत्पादन किया जा सकता है।
भूमि भाव अधिकांशत: गैर-उपयोग की खानों, खनन रिक्तियों आदि क्षेत्रों में बनाये जाते हैं। यह अपशिष्ट निपटान का एक बहुत ही साफ और अपेक्षाकृत कम खर्च वाला तरीका है तथा अधिकतर देशों में यह आम चलन है। आधुनिक समय में भूमि भराव द्वारा नियोजित तरीकों से अपशिष्ट का निष्पादन किया जाता हैं। गड्ढों को मिट्टी से भर देते हैं और भूमि भराव गैस निकासी के लिए भूमि भराव गैस प्रणाली स्थापित की जा सकती है। इस गैस को एकत्रित कर विद्युत उत्पादन किया जा सकता है।
(2) पुनर्चक्रण :
घरों के पुराने अखवार, शीशियाँ, प्लास्टिक और धातु से बनी चीजों को कारखानों में कुछ प्रक्रियाओं द्वारा नये रूप में परिवर्तित किया जाता है। प्राकृतिक जैविक अपशिष्ट पदार्थों से कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, जैविक खाद तैयार की जाती है तथा इस प्रक्रिया से गैस उत्पादन कर विद्युत बनायी जाती है।
घरों के पुराने अखवार, शीशियाँ, प्लास्टिक और धातु से बनी चीजों को कारखानों में कुछ प्रक्रियाओं द्वारा नये रूप में परिवर्तित किया जाता है। प्राकृतिक जैविक अपशिष्ट पदार्थों से कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, जैविक खाद तैयार की जाती है तथा इस प्रक्रिया से गैस उत्पादन कर विद्युत बनायी जाती है।
खण्ड : स
उत्तर 22.
(अ) रेशम कीट के लार्वा का नाम कैटरपिलर है।
(ब) मधुमक्खी पालन से प्राप्त दो उत्पादों के नाम
(अ) रेशम कीट के लार्वा का नाम कैटरपिलर है।
(ब) मधुमक्खी पालन से प्राप्त दो उत्पादों के नाम
- मधुमोम
- शहद
(स) रेशम धागे झ, निर्माण :
रेशम कीट का लार्वा लार ग्रन्थियों से लार का स्राव, करता है। यह चिपचिपा पदार्थ हवा के सम्पर्क में आकर रेशम में भल जाता है। इस समय लार्वा एक विशेष रूप से अपने सिर को हिलाता रहता है जिससे रेशम के धागों की बुनाई होने लगती है और लार्वा के चारों ओर कोये का निर्माण हो जाता है। इस कोये को एकत्रित कर लिया जाता है। उसे भाप में रख दिया जाता हैं जिससे उसके भीतर का प्यूपा अवस्था मर जाती है । इसके बाद कोये सुखा लिये जाते हैं। उनके रेशम को निकालकर चरखी पर लपेट लिया जाता है। एक कोये से लगभग एक हजार किलोमीटर तक रेशम प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार रेशम कीट से रेशम प्राप्त कर लिया जाता है।
रेशम कीट का लार्वा लार ग्रन्थियों से लार का स्राव, करता है। यह चिपचिपा पदार्थ हवा के सम्पर्क में आकर रेशम में भल जाता है। इस समय लार्वा एक विशेष रूप से अपने सिर को हिलाता रहता है जिससे रेशम के धागों की बुनाई होने लगती है और लार्वा के चारों ओर कोये का निर्माण हो जाता है। इस कोये को एकत्रित कर लिया जाता है। उसे भाप में रख दिया जाता हैं जिससे उसके भीतर का प्यूपा अवस्था मर जाती है । इसके बाद कोये सुखा लिये जाते हैं। उनके रेशम को निकालकर चरखी पर लपेट लिया जाता है। एक कोये से लगभग एक हजार किलोमीटर तक रेशम प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार रेशम कीट से रेशम प्राप्त कर लिया जाता है।
उत्तर 23.
व्युत्क्रम संकरण :
वह संकरण जिसमें ‘A’ पादप (TT) को नर व ‘B’ पादप (tt) को मादा जनक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है तथा दूसरे संकरण में ‘A’ पादप (TT) को मादा च “B” (tt) पादप को नर जनक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, उसे व्युत्क्रम संकरण कहते है।
F1 पीढ़ी का संकरण प्रभावी समयुग्मजी जनक से कराने पर :
F1 पीढ़ी के पादप (Tt) का संकरण अपने प्रभावी जनक (TT) से करवाया जाता है। इस संकरण से प्राप्त संतति में सभी पौधे लम्ये प्राप्त होते हैं जिनमें 50% समयुग्मजी लम्बे (TT) तथा 50% विषम युग्मजी लम्बे (Tt) पौधे प्राप्त होंगे।

लक्षणप्ररूप अनुपात : 100 पौधे लम्बे
जनप्ररूप अनुपात : 1 : 1
50% TT : 50% Tt
(समयुग्मजी) (विषमयुग्मजी)
व्युत्क्रम संकरण :
वह संकरण जिसमें ‘A’ पादप (TT) को नर व ‘B’ पादप (tt) को मादा जनक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है तथा दूसरे संकरण में ‘A’ पादप (TT) को मादा च “B” (tt) पादप को नर जनक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, उसे व्युत्क्रम संकरण कहते है।
F1 पीढ़ी का संकरण प्रभावी समयुग्मजी जनक से कराने पर :
F1 पीढ़ी के पादप (Tt) का संकरण अपने प्रभावी जनक (TT) से करवाया जाता है। इस संकरण से प्राप्त संतति में सभी पौधे लम्ये प्राप्त होते हैं जिनमें 50% समयुग्मजी लम्बे (TT) तथा 50% विषम युग्मजी लम्बे (Tt) पौधे प्राप्त होंगे।
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लक्षणप्ररूप अनुपात : 100 पौधे लम्बे
जनप्ररूप अनुपात : 1 : 1
50% TT : 50% Tt
(समयुग्मजी) (विषमयुग्मजी)
उत्तर 24.
(अ) विरंजक चूर्ण का सूत्र – CaOCI2
विरंजन क्रिया :
शुष्क बुझे हुए चूने पर बलोरीन गैस प्रवाहित करके इसका उत्पादन किया जाता हैं।

(ब) Zn धातु की तनु H2SO4 से होने वाली रासायनिक अभिक्रिया का नामांकित चित्र

(अ) विरंजक चूर्ण का सूत्र – CaOCI2
विरंजन क्रिया :
शुष्क बुझे हुए चूने पर बलोरीन गैस प्रवाहित करके इसका उत्पादन किया जाता हैं।
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(ब) Zn धातु की तनु H2SO4 से होने वाली रासायनिक अभिक्रिया का नामांकित चित्र
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उत्तर 25.
(अ) (i) प्रश्नानुसार दिया है,
I = 0.50 एम्पीयर
V= 2 वोल्ट
R- ?
R=
= 2/0.50 = 4 ओम
(ii) प्रश्नानुसार दिया है,
I = 0.75 एम्पीयर
V = 3 वोल्ट
R = ?
R=
= 0.75/3 = 4 ओम
(ब) प्रश्नानुसार दिया है,
उत्पन्न ऊष्म (H) = ?
V= 12 वोल्ट
t = 15 मिनट
R = 25 ओम
H= I2Rt
I =
= 
H =
x
x 25 x 15 x 60
H = 5184 जूल
(अ) (i) प्रश्नानुसार दिया है,
I = 0.50 एम्पीयर
V= 2 वोल्ट
R- ?
R=
(ii) प्रश्नानुसार दिया है,
I = 0.75 एम्पीयर
V = 3 वोल्ट
R = ?
R=
(ब) प्रश्नानुसार दिया है,
उत्पन्न ऊष्म (H) = ?
V= 12 वोल्ट
t = 15 मिनट
R = 25 ओम
H= I2Rt
I =
H =
H = 5184 जूल
उत्तर 26.
(अ) प्रश्नानुसार दिया है,
द्रव्यमान (m) = 40 किग्रा
प्रारम्भिक वेग (v) = I मीटर/सेकण्ड
अन्तिम वेग (u) = 2 मीटर/सेकण्ड
कार्य (W) = ?
w =
mv2 –
mu2
w =
m (v2 – u2)
w =
x 40 ((2)2 – (1)2)
w =
x 40 (4 – 1)
w =
x 40 x 3
w = 60 जूल
(ब) प्रश्नानुसार दिया है,
K= 4 x 103 N/m
X = 2 सेमी = 0.02 मी.
Ep = ?
Ep=
Kx2
Ep =
x 4 x 103 x 0.02 x 0.02
Ep = 0.8 जूल
(अ) प्रश्नानुसार दिया है,
द्रव्यमान (m) = 40 किग्रा
प्रारम्भिक वेग (v) = I मीटर/सेकण्ड
अन्तिम वेग (u) = 2 मीटर/सेकण्ड
कार्य (W) = ?
w =
w =
w =
w =
w =
w = 60 जूल
(ब) प्रश्नानुसार दिया है,
K= 4 x 103 N/m
X = 2 सेमी = 0.02 मी.
Ep = ?
Ep=
Ep =
Ep = 0.8 जूल
उत्तर 27.
जैव विविधता जैव :
विविधता दो शब्दों से मिलकर बना है-जैव अर्थात् जीवन तथा विविधता अर्थात् विभिन्नता। अत: जैव-विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर पाए जाने वाले शीवधारियों के मध्य पायी जाने वाली विभिन्नता।
जैव विविधता जैव :
विविधता दो शब्दों से मिलकर बना है-जैव अर्थात् जीवन तथा विविधता अर्थात् विभिन्नता। अत: जैव-विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर पाए जाने वाले शीवधारियों के मध्य पायी जाने वाली विभिन्नता।
स्वःस्थाने संरक्षण (In-situ conservation) :
ऐसा संरक्षण जो प्राकृतिक आवास में ही मानव द्वारा प्रदत्त अनुरक्षण से किया जाता हैं, स्वस्थाने संरक्षण कहलाता है। जिस संकटग्रस्त प्रजाति को संरक्षित करना होता हैं, उसके अनुसार चर्यानत प्राकृतिक आवास में ही अनुकूल परिस्थितियाँ एवं सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अन्तर्गत जीवमण्डल रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य तथा संरक्षण रिज़र्व आदि की स्थापना की जाती हैं।
ऐसा संरक्षण जो प्राकृतिक आवास में ही मानव द्वारा प्रदत्त अनुरक्षण से किया जाता हैं, स्वस्थाने संरक्षण कहलाता है। जिस संकटग्रस्त प्रजाति को संरक्षित करना होता हैं, उसके अनुसार चर्यानत प्राकृतिक आवास में ही अनुकूल परिस्थितियाँ एवं सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अन्तर्गत जीवमण्डल रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य तथा संरक्षण रिज़र्व आदि की स्थापना की जाती हैं।
बहिःस्थाने संरक्षण (Ex-situ Conscnation) :
इसमें प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर कृत्रिम आवास में संरक्षण प्रदान किया जाता हैं। इसके लिए वानस्पतिक उद्यान, यीज बैंक, ऊत्तक संवर्धन प्रयोगशाला आदि की स्थापना की जाती है।
अथवा
आनुवांशिक विविधता :
एक ही प्रजाति के विभिन्न सदस्यों के बीच आनुवांशिक इकाई जीन के कारण पाई जाने वाली भिन्नता आनुवांशिक विविधता कहलाती है। जैव विविधता संकट के कारण
इसमें प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर कृत्रिम आवास में संरक्षण प्रदान किया जाता हैं। इसके लिए वानस्पतिक उद्यान, यीज बैंक, ऊत्तक संवर्धन प्रयोगशाला आदि की स्थापना की जाती है।
अथवा
आनुवांशिक विविधता :
एक ही प्रजाति के विभिन्न सदस्यों के बीच आनुवांशिक इकाई जीन के कारण पाई जाने वाली भिन्नता आनुवांशिक विविधता कहलाती है। जैव विविधता संकट के कारण
(1) प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना :
प्रत्येक जीव-जन्तु के लिए इन्द्र निश्चित आवास प्रकृति ने निर्धारित किया हैं जिसमें हकर वह प्रकृति के नियमों के अन्तर्गत अपना जीवन-यापन कर अपनी संख्या में वृद्धि करता है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम इन प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर आबादी व कृषि भूमि का विस्तार कर रहे हैं पृथ्वी पर 50 लाख से 3 करोड़ प्रजातियाँ निवास करती हैं। जिनमें से 50 प्रतिशत से अधिक प्रजातियाँ उष्ण कटिबंधीय वनों में पाई जाती हैं। किन्तु आज ये वन 1.7 करोड़ हैक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से काटे जा रहे हैं। यदि इसी दर, से उष्ण कटिबंधीय वनों की कटाई होती रही तो एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार आने वाले 30 वर्षों में उक्त वनों की 5 से 10 ‘तशत वनस्पति व जन्तु प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएँगी।
प्रत्येक जीव-जन्तु के लिए इन्द्र निश्चित आवास प्रकृति ने निर्धारित किया हैं जिसमें हकर वह प्रकृति के नियमों के अन्तर्गत अपना जीवन-यापन कर अपनी संख्या में वृद्धि करता है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम इन प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर आबादी व कृषि भूमि का विस्तार कर रहे हैं पृथ्वी पर 50 लाख से 3 करोड़ प्रजातियाँ निवास करती हैं। जिनमें से 50 प्रतिशत से अधिक प्रजातियाँ उष्ण कटिबंधीय वनों में पाई जाती हैं। किन्तु आज ये वन 1.7 करोड़ हैक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से काटे जा रहे हैं। यदि इसी दर, से उष्ण कटिबंधीय वनों की कटाई होती रही तो एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार आने वाले 30 वर्षों में उक्त वनों की 5 से 10 ‘तशत वनस्पति व जन्तु प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएँगी।
(2) प्राकृतिक आवास विखण्डन :
वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास जो पहले विस्तृत क्षेत्र में अविभक्त रूप से फैले थे आज सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन, नाहर, विद्युत लाइन, याँध, रखेत आदि के निर्माण से विखण्डित हो गए हैं जिससे वन्य जीवों के प्राकृतिक क्रियाकलाप प्रभावित होते हैं तथा वे अपने को इन गतिविधियों से असुरक्षित महसूस करते हैं। अनेक वन्य प्राणी वाहनों की चपेट में आ जाते हैं अथवा मानव बस्ती में आने से लोगों द्वारा मार दिए जाते हैं।
वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास जो पहले विस्तृत क्षेत्र में अविभक्त रूप से फैले थे आज सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन, नाहर, विद्युत लाइन, याँध, रखेत आदि के निर्माण से विखण्डित हो गए हैं जिससे वन्य जीवों के प्राकृतिक क्रियाकलाप प्रभावित होते हैं तथा वे अपने को इन गतिविधियों से असुरक्षित महसूस करते हैं। अनेक वन्य प्राणी वाहनों की चपेट में आ जाते हैं अथवा मानव बस्ती में आने से लोगों द्वारा मार दिए जाते हैं।
खण्ड : द
उत्तर 28.
(अ) श्वसन :
गैसों (CO2 व O2) के आदान-प्रदान की क्रिया जो पर्यावरण, रक्त और कोशिकाओं के मध्य होती है को श्वसन (Respiratiort) कहते हैं।
(ब) मानव श्वसन का नामांकित चित्र

(स ) श्वसन की क्रियाविधि :
फुफ्फुसीय वायु संचालन फेफड़ों में वायु का प्रवेश व निकास की एक ऐसी प्रक्रिया है जो गैसीय विनिमय को आसान बनाती है। इस वाय संचालन के लिए श्वसन तं। वायुमण्डल तथा कृपिका के मध्य ऋणात्मक दबाव प्रवणता (Negative pressure gradient) एवं ड्रायलम के संकुचन का उपयोग होता है। इस कारण वायुमण्डल से अधिक दबाव वाली वायु फेफड़ों में प्रवेश करती हैं।
श्वसन क्रिया दो चरणों में होती है
(अ) श्वसन :
गैसों (CO2 व O2) के आदान-प्रदान की क्रिया जो पर्यावरण, रक्त और कोशिकाओं के मध्य होती है को श्वसन (Respiratiort) कहते हैं।
(ब) मानव श्वसन का नामांकित चित्र

(स ) श्वसन की क्रियाविधि :
फुफ्फुसीय वायु संचालन फेफड़ों में वायु का प्रवेश व निकास की एक ऐसी प्रक्रिया है जो गैसीय विनिमय को आसान बनाती है। इस वाय संचालन के लिए श्वसन तं। वायुमण्डल तथा कृपिका के मध्य ऋणात्मक दबाव प्रवणता (Negative pressure gradient) एवं ड्रायलम के संकुचन का उपयोग होता है। इस कारण वायुमण्डल से अधिक दबाव वाली वायु फेफड़ों में प्रवेश करती हैं।
श्वसन क्रिया दो चरणों में होती है
- बाह्य श्वसन (External Respiration) : इसमें गैसों का विनिमय हवा से भारी कूपिकाओं तथा केशिकाओं में प्रवाहित रक्त के मध्य गैसों के आंशिक दबाव के अन्तर के कारण होता है।
- आन्तरिक श्वसन (Internal Respiration) : इसमें गैसों का विनिमय केशिकाओं में प्रवाहित रवत तथा ऊतकों को मध्य विसरण के माध्यम से होता है।
अथवा
(अ) मादाओं के प्राथमिक लैंगिक अंग में एक जोड़ी अण्डाशय होते हैं।
(ब) मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र
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(स) मानव प्रजनन की दो अवस्थाएँ
(1) युग्मकजनन (Gainstonesis) :
वृषण तथा अण्डाशय में अगुणित युग्मकों (Haploid gametes) को निर्माण विधि को बुग्मकजनन कहा जाता हैं। नर के वृषण में होने वाली इस क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है तथा यह क्रिया शुक्रजनन कहलाती है। मादा के अण्डाशय में युग्मकों की निर्माण क्रिया जिसके द्वारा अण्डाणु का निर्माण होता है अण्डजनन कहलाती है।
(अ) मादाओं के प्राथमिक लैंगिक अंग में एक जोड़ी अण्डाशय होते हैं।
(ब) मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र
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(स) मानव प्रजनन की दो अवस्थाएँ
(1) युग्मकजनन (Gainstonesis) :
वृषण तथा अण्डाशय में अगुणित युग्मकों (Haploid gametes) को निर्माण विधि को बुग्मकजनन कहा जाता हैं। नर के वृषण में होने वाली इस क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है तथा यह क्रिया शुक्रजनन कहलाती है। मादा के अण्डाशय में युग्मकों की निर्माण क्रिया जिसके द्वारा अण्डाणु का निर्माण होता है अण्डजनन कहलाती है।
(2) निषेचन (Fertilization) :
मादा में उपस्थित अण्डाणु मैथुन के दौरान नर द्वारा छोड़े गए शुक्राणुओं के संपर्क में आते हैं तथा संयुग्मन कर युग्मनज (Zygote) का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया निषेचन कहलाती है।
मादा में उपस्थित अण्डाणु मैथुन के दौरान नर द्वारा छोड़े गए शुक्राणुओं के संपर्क में आते हैं तथा संयुग्मन कर युग्मनज (Zygote) का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया निषेचन कहलाती है।
उत्तर 29.
(अ) आवर्त सारणी में A-ब्लॉक के तत्त्व (लैन्थेनाइड एवं एक्टिनाइड) परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं।
(ब) ऋणायन का आकार अपने संगत परमाणु से बड़ा होता है किसी परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने से ऋणायन बनता हैं।
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ऋणायन बनने में बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ती है एवं प्रभावी नाशिकीय आवेश का मान कम होता है। अत: ऋणायन का आकार हमेशा उसके उदासीन परमाणु से बड़ा होता है।
(स) CaH2 NaH, SiH4, AlH3
(अ) आवर्त सारणी में A-ब्लॉक के तत्त्व (लैन्थेनाइड एवं एक्टिनाइड) परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं।
(ब) ऋणायन का आकार अपने संगत परमाणु से बड़ा होता है किसी परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने से ऋणायन बनता हैं।
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ऋणायन बनने में बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ती है एवं प्रभावी नाशिकीय आवेश का मान कम होता है। अत: ऋणायन का आकार हमेशा उसके उदासीन परमाणु से बड़ा होता है।
(स) CaH2 NaH, SiH4, AlH3
- CaH2 में Ca की संयोजकता 2 है।
- NaH में Na की संयोजकता 1 हैं।
- SiH4 में Si की संयोजकता 4 है।
- AlH3 में Al की संयोजकता 3 है।
अधवा
(अ) दो उपधातुओं के नाम–सिलिकॉन (Si) और जर्मेनियम (Ge) हैं।
(ब) किसी आवर्त में बायें से दायें जाने पर परमाणु आकार किस प्रकार परिवर्तित होता है किसी आयत में बायें से दायें जाने पर परमाणु त्रिज्या घटती है। नाभिक में आवेश के बढ़ने से यह इलेक्ट्रॉन को नाभिक की ओर खींचता है जिससे परमाणु का आकार घटता जाता है।
(स) परमाणु आकार के बढ़ते हुए क्रम में तत्त्व Li < Na < K < Cs
(अ) दो उपधातुओं के नाम–सिलिकॉन (Si) और जर्मेनियम (Ge) हैं।
(ब) किसी आवर्त में बायें से दायें जाने पर परमाणु आकार किस प्रकार परिवर्तित होता है किसी आयत में बायें से दायें जाने पर परमाणु त्रिज्या घटती है। नाभिक में आवेश के बढ़ने से यह इलेक्ट्रॉन को नाभिक की ओर खींचता है जिससे परमाणु का आकार घटता जाता है।
(स) परमाणु आकार के बढ़ते हुए क्रम में तत्त्व Li < Na < K < Cs
उत्तर 30.
(अ) अग्निम सूर्योदय तथा विलंबित सयास्त वायुमण्डलीय अपवर्तन के कारण सुर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पहले दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट बाद तक दिखाई देता रहता है। वास्तविक सुर्योदय से अर्थ है—सूर्य द्वारा वास्तव में क्षितिज को पार करना। सूर्य की क्षितिज के सापेक्ष वास्तविक तथा आभासी स्थितियाँ चित्र में दर्शायी गयी है। वास्तविक सूर्यास्त और आभासी सूर्यास्त के बीच समय का अंतर लगभग 2 मिनट है। इसी परिघटना के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी प्रतीत हाती हैं।
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(ब) श्वेत प्रकाश के वर्ण विश्लेषण :
जब श्वेत प्रकाश पुंज (सूर्य से या बल्ब से) काँच के प्रिज्म से गमन करता है, तो यह सात रंगों में विभक्त हो जाता है। ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी हैं, श्वेत प्रकाश का विक्षेपण कहलाता है। सात रंगों का क्रम (समूह) वर्णक्रम कहलाता है।
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(स) प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन :
जब प्रकाश किरणे सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती हैं तो ये अपवर्तन के पश्चात् अभिलम्ब से दूर होती जाती हैं (r > i) यदि किरणों के आपरान कोण i के मान को बढ़ाते जाएं तो आपतन कोण के एक विशिष्ट मान, जिसे उस माध्यम का क्रान्तिक कोण भी कहा जाता है, पर अपवर्तित किरण दोनों माध्यमों के पृथक्कारी पृष्ठ के समान्तर से गुजरती है। इस अवस्था को अपवर्तन कोण r = 90º होता है।

अब यदि प्रकाश किरणों के आपतन कोण को और बढ़ाया जाए तो प्रकाश की किरण विरल माध्यम में अपवर्तित होने के स्थान पर सपन माध्यम में ही परावर्तित हो जाती है। इसे पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं। प्रकाश तन्तु द्वारा संचार में इसी प्रभाव का उपयोग किया ज्ञाता है।
(अ) अग्निम सूर्योदय तथा विलंबित सयास्त वायुमण्डलीय अपवर्तन के कारण सुर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पहले दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट बाद तक दिखाई देता रहता है। वास्तविक सुर्योदय से अर्थ है—सूर्य द्वारा वास्तव में क्षितिज को पार करना। सूर्य की क्षितिज के सापेक्ष वास्तविक तथा आभासी स्थितियाँ चित्र में दर्शायी गयी है। वास्तविक सूर्यास्त और आभासी सूर्यास्त के बीच समय का अंतर लगभग 2 मिनट है। इसी परिघटना के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी प्रतीत हाती हैं।
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(ब) श्वेत प्रकाश के वर्ण विश्लेषण :
जब श्वेत प्रकाश पुंज (सूर्य से या बल्ब से) काँच के प्रिज्म से गमन करता है, तो यह सात रंगों में विभक्त हो जाता है। ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी हैं, श्वेत प्रकाश का विक्षेपण कहलाता है। सात रंगों का क्रम (समूह) वर्णक्रम कहलाता है।
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(स) प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन :
जब प्रकाश किरणे सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती हैं तो ये अपवर्तन के पश्चात् अभिलम्ब से दूर होती जाती हैं (r > i) यदि किरणों के आपरान कोण i के मान को बढ़ाते जाएं तो आपतन कोण के एक विशिष्ट मान, जिसे उस माध्यम का क्रान्तिक कोण भी कहा जाता है, पर अपवर्तित किरण दोनों माध्यमों के पृथक्कारी पृष्ठ के समान्तर से गुजरती है। इस अवस्था को अपवर्तन कोण r = 90º होता है।
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अब यदि प्रकाश किरणों के आपतन कोण को और बढ़ाया जाए तो प्रकाश की किरण विरल माध्यम में अपवर्तित होने के स्थान पर सपन माध्यम में ही परावर्तित हो जाती है। इसे पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं। प्रकाश तन्तु द्वारा संचार में इसी प्रभाव का उपयोग किया ज्ञाता है।
(द) जब बिम्ब सीमित दूरी पर स्थित हो :
यदि बिम्ब अवतल लेंस से किसी सीमित दूरी पर हो (अनन्त में प्रकाशिक केन्द्र के बीच) तो विम्ब का आभासी, सीधा एवं बिम्ब से छोटा प्रतिबिम्ब बनता है। जैसे-जैसे बिम्ब को लेंस के पास लाते जायेंगे, तब प्रतिबिम्ब का आकार बढ़ता जायेगा किन्तु उसका आकार हमेशा विम्य (वस्तु) से छोटा ही होगा।
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अथवा
(अ) पेन्सिल के पानी में डूबे हुए भाग से जो प्रकाश हम तक पहुँचता है वह पेन्सिल के पानी से बाहर के भाग से आने वाले प्रकाश से भिन्न दिशा से आता हुआ प्रतीत होता है। इसीलिए पेन्सिल का पानी के भीतर वाला भाग थोड़ा उठा हुआ दिखाई देता है अर्थात् पेन्सिल तिरछी दिखाई देती हैं।

(ब) लैंस की क्षमता :
लेंस की प्रकाश किरणों को अभिसारित या अपसारित करने की क्षमता ही लेंस की क्षमता कहलाती है। लेंस की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम होती है।
p =
यदि f मीटर में है तो P का मात्रक डाइऑप्टर (Diopire) होता है।
यदि बिम्ब अवतल लेंस से किसी सीमित दूरी पर हो (अनन्त में प्रकाशिक केन्द्र के बीच) तो विम्ब का आभासी, सीधा एवं बिम्ब से छोटा प्रतिबिम्ब बनता है। जैसे-जैसे बिम्ब को लेंस के पास लाते जायेंगे, तब प्रतिबिम्ब का आकार बढ़ता जायेगा किन्तु उसका आकार हमेशा विम्य (वस्तु) से छोटा ही होगा।
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अथवा
(अ) पेन्सिल के पानी में डूबे हुए भाग से जो प्रकाश हम तक पहुँचता है वह पेन्सिल के पानी से बाहर के भाग से आने वाले प्रकाश से भिन्न दिशा से आता हुआ प्रतीत होता है। इसीलिए पेन्सिल का पानी के भीतर वाला भाग थोड़ा उठा हुआ दिखाई देता है अर्थात् पेन्सिल तिरछी दिखाई देती हैं।
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(ब) लैंस की क्षमता :
लेंस की प्रकाश किरणों को अभिसारित या अपसारित करने की क्षमता ही लेंस की क्षमता कहलाती है। लेंस की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम होती है।
p =
यदि f मीटर में है तो P का मात्रक डाइऑप्टर (Diopire) होता है।
(स) दृष्टि वैषम्य दोष :
दृष्टिवैषम्य दोष कॉर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता है। इसमें व्यक्ति को समान दूरी पर रखी ध्वधर व क्षैतिज रेखाएँ एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं।
निवारण : बेलनाकार लेन्स का उपयोग करके इस दोष का निवारण किया जाता है।
दृष्टिवैषम्य दोष कॉर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता है। इसमें व्यक्ति को समान दूरी पर रखी ध्वधर व क्षैतिज रेखाएँ एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं।
निवारण : बेलनाकार लेन्स का उपयोग करके इस दोष का निवारण किया जाता है।
(द) अवतल दर्पण से प्रतिबिम्ब का बनना दशनि का किरण चित्र, जब बिम्ब इसके वक्रता केन्द्र ‘C’ व फोकस ‘F’ के मध्य स्थित हो

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We hope taht this post will help you to understand the exam pattern of R.B.S.E. If you have any query regarding Rajasthan Board of Education sample papers for Class 10, drop a comment below. Thank you!
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